श्रीजन्माष्टमीकी वैष्णव की गृह सेवा प्रणालिका
कुल पार्ट :: ८ ( १ से ८ तक )
(पार्ट :: १)
सबसू पहेले ये बात समजे की जन्माष्टमी के दिन की सेवा प्रणालिका को क्रम श्रीजीद्वार मे निधिस्वरूपो के यहा और वैष्णव के गृह मे भिन्न है… यहा पर वैष्णव के गृह की प्रणालिका लिखी जा रही हे
जन्माष्टमी के आगे के दिन उत्सव तैयारी की जाती है… जिसमे सब सोने चाँदी के पात्र और खिलोने मांझी के चकचकित किए जाते है… सब सामग्री सिद्ध कर दी जाती हे दूधगर, नागरी और अनसखड़ी की , साज़ पलट कर उत्सव को धर देनो चाहिए … पांचामृत के लिए सब तैयार होनो चाहिए … १ छाब मे जो वस्त्र सृंगार प्रभु धरने वाले हे वो तैयार कर दीजिए… नई गूंजा की माला अत्तर भेट की रोकड़ तैयार होने चाहिए ये सब अगले दिन की तैयारी हे
( पार्ट :: २ )
श्रीजन्माष्टमीकी वैष्णव की गृह सेवा प्रणालिका (पार्ट-२)
अब जन्माष्टमी के दिन श्रीप्रभु को थोड़ा जल्दी जगाए नित्यसे … प्रथम श्रीमहाप्रभुजीको कीर्तन दूसरो जमुनाजीको और तीसरो जगायवेको वामे बधाई गाइ जाय “सुनोरि आज नवल बढ़ायो है (परमानंददासजी)” अब तीन बेर तारी बजाय के तीन बेर घंटी बजाय के श्री को जगावे और शैया मे सू सिंहासन पे पधरावे… अब श्रीकू मुख पोन्छिके पित ओढनी धरे केसरी माला कंठ मे धरे लाल पाघ् धरे कर्ण फूल और शीशफूल धरे (श्री सिर्फ़ आज के दिन ही मंगला मे माला धरे) अब कलेवा धरे … नागरी , माखन-मिश्री की कटोरी, केसर दूध और जल इत्यादि यथा सौकर्य धरे तब कानी दे टेरा करी बधाई गाइ जाय “आज गृह नंदमहर के बधाई (सूरदासजी)” (आज कलेवा सू जांझ बजे) अब समय भये भोग सराई अचवन् मुखवास्त्र कराई मंगल आरती की भावना की जाय उसके बाद मंगला सन्मुख बधाई “देखो नन्दकुमार नैन भर(चत्रभुजदासजी)” गायो जाय… अब पांचामृत की तैयारी होय….
( पार्ट ३ )
श्रीजन्माष्टमीकी वैष्णव की गृह सेवा
प्रणालिका (पार्ट-३)
आज स्नान को विशिष्ठ क्रम हे मंगला के बाद १ तासक मे चोकी धरके उसके पर स्वेत वस्त्र धरके अब श्री कू पधरावे सब वस्त्र, सृंगार बड़े करके १ हाथ मे तुलसीदल और ५ तुलसीपत्र लेके गद्यमन्त्र बोलके श्री के चरण के पास तुलसीदल पधरावे (जिनको मन्त्र आतो ना होय वो याको भावार्थ बोले) और तुलसीपत्र पंचामृत मे | अब श्रीकु चंदन को तिलक करके दंडवत करके पंचामृत की आज्ञा माँगे … पहेले सू ही १ थालिमे ५ कटोरी तैयार रखे जिसमे १ मे दूध २ मे दही ३ मे बुरा ४ मे घी और ५ मे मध तैयार रखे वो श्री के पास पधरावे… अब १ लॉटी या शंख सू पंचामृत करावे वा समय “व्रज भयो महर के पूत (सूरदासजी)” गाइ जाय … पहेले दूध सो बाद मे दही सो बाद मे बूरासो बाद मे घी सो बाद मे मध सो और अंत मे फिर से दूध सो स्नान करावे …. अब श्री को दूसरी चोकी पे पधराइ अभ्यंग होय ,,, वामे भी विशिष्ठता है..
( पार्ट ४ )
श्रीजन्माष्टमीकी वैष्णव की गृह सेवा प्रणालिका (पार्ट-४)
अब अभ्यंग के लिए जो जल सुहातो करे वामे केसर और गुलाबजल डाल्यो जाय अब श्री को अभ्यंग को पावडर लगायके वा जल सो स्नान करावे अब अंगवस्त्र करे और श्रीके अंग मे सोंधा को अत्तर लगायो जाय … अब प्रभु को सिंहासन पे पधाराय के केसरी उत्सव के वाघा धरिये (श्रीप्रभु ८ और ९ को ही वाघा धरे १० सू फिर से सिर्फ़ ओढनी धरे) अब पांचामृत और अभ्यंग को सब साज़ बडो करके पोतना करके हाथ ख़ासा करके हाथ मे अत्तर लगाय के शृंगार की तैयारी करिए …. नख शिख ताई सुंदर सृंगार बड़े भारी उत्सव के धरे श्री मस्तक पे केसरी कूल्हे पर पाँच चंद्रिका जोड़ उत्सव को चोटीजी धरे (कही जगा पे स्वेत कूल्हे धरे हे) आज गूंजा की माला नई धरे वाघनखा धरे,केसर सो कमलपत्र कपोल पे चित्र करी सके… गादि पे भी बड़े भारी उत्सव के शृंगार करिए,केसरी उपरना ओढ़ाइए… २ पुष्पमाला धरिये (पुष्पमाला को सौकरया न होय तो पवित्रा धर सके) अब प्रभु को तिलक करिए कुमकुम को तिलक २ बार करके अक्षत २ बार लगाय के भेट धरिये (भेट मे सिक्का ही धरे जाय ५ को या १० को नोट के छुयो ना जाय अप्रसमे) २ बीड़ा धरके प्रभूको दर्पण दिखाइए और दंडवत करिए शृंगार सन्मुख १ बधाई गावे “मिली मंगल गाओ माई (परमानंददासजी)”
( पार्ट :: ५ )
श्रीजन्माष्टमीकी वैष्णव की गृह सेवाप्रणालिका
श्रीजन्माष्टमीकी(२) (पार्ट ५ से ७ तक)
अब पुष्पमाला बड़ी करके यथासौकर्य राजभोग धरिये (वैष्णव आज व्रत करे व्रत मे फलाहार को ही नियम हे.. पर प्रभु सब आरोगे) उत्सव भोग की सब सामग्री धरिये .. केसर पेंडा, श्रीखंड, पंजरी, तिल-गुड युक्त दूध, खीर,सखड़ी (धरते होय तो) इत्यादि सब सामग्री सजाय के भोग धरिये हाथ मे तुलसी दल और तुलसी पत्र ले गद्यमन्त्र बोलके दल चरण मे धरिये और पत्र सब सामग्री मे | अब कानी दे टेरा करिये वा समय बधाई बोली जाय “लाल को सुफल जन्मदिन आयो (द्वारकेशजी)” अब जप पाठ करिए रसोई पोतिये नित्य के क्रम से आज राजभोग को समय दुगनो (double) होय …. अब समय भए भोग सराइये पोतना करी श्रीकु आचमन मुखवस्त्र कराइके २ बिरी आरोगाइए,माला धरीके, जारी बँटा पास धरीके अब थोड़ी देर खिलोना सो खिलाइए आर्तीकी भावना करिके २ कीर्तन गाए जाय ” आज बधाई को दिन निको और हेरी हे आज नन्दराय के आनंद भयो (दोनो पद परमानंददासजी के)” अब जिनके यहा अनोसर को क्रम होय वो अनोसर कराईए…..
( पार्ट :: ६ )
श्रीजन्माष्टमीकी वैष्णवकी गृह सेवा प्रणालिका पार्ट : ६
अब उत्थापन के समय भये टेरा खोलीके झारी बँटा फूलमाला बड़ी करके भोग धारिए (अगर अनोसर को क्रम ना होय तो सिधो उत्थापन भोग धरिये) वा समय “आँगन नंदके दधि कादो(मेहा)” ये बधाई गाइ जाय (उत्थापन क दर्शनमे कोई कीर्तन नही गायो जाय हे) उत्थापनभोग मे सुकमेवा लीलामेवा विशेष रूप सो धरे जाय हे | अब समय भये भोग सराईए पोतना करी अचवन मुख्वस्त्र करायके संध्याआर्ती की भावना करी जाय अब संध्या के भाव सो २ बधाई गाइ जाय ” आज कहुते या गोकुल में॥(गदाधरदासजी) और धर्म हिते पायो यह धन (परमानंददासजी)” आज सृंगार बड़े ना होय और तुरंत शेन भोग धरिये … शेन भोग मे दूध , फीका और यथा सौकर्य अनसखड़ी धरी जाय.. वा समय ब्यारू की बधाई “तिहारो घर सुबस बसों (परमानंददासजी)” गायो जाय…. ब्यारू को समय नित्य के समय से थोडो ज़्यादा रखिए… अगर पाठ या जप बाकी होय तो वो करिए श्रीके पात्र मांजवेकी सेवा करिए… समय भये भोग सरायके पोतना करी अचवन मुख्वस्त्र करायके २ बधाई गावे “रावल के गोप (चत्रभुजदासजी) और हरि जनमत ही आनंद भयो (परमानंददासजी)” गायो जाय अब शेनआर्ति की भावना करके सब शृंगार वस्त्र बड़े करे और श्रीकू पोढ़ाई दे पोढ़ाई के बाद “रानी जशुमतिगृह आवत गोपिजन (परमानंददासजी) और दृढ़ इन चरणन केरो (आश्रयको पद सूरदासजी)” गायो जाय वैष्णव के यहा जागरणको और रात्रीके जन्मको पंचामृत ये सब कोई क्रम नही हे | सब वैष्णव मिलके व्रत को महाप्रसाद लेके साथ मिलके बधाई गान करे गरबा हिंचहमची गाय के आनंद करे भगवद्नाम सत्संग करी रात्रि को जागरण करे और १२:३० बजे रात्रीके व्रत समाप्त होय तब सब प्रसाद लाई सके |
( पार्ट। :: ७ )
श्रीजन्माष्टमीकी वैष्णव की गृह सेवा प्रणालिका (पार्ट- ७)
अब दूसरे दिन ९ की प्रणलिका: अब ९ के दिन हू श्रीकू बेगी उठायके मंगलभोग धरायके सरा कर आर्तीकी भावना करके तुरंत श्रृंगार धरे. आज स्नान को या कीर्तन को क्रम ना होय… वस्त्र – श्रृंगार सब जन्माष्टमीके दिन केही आवे, वाघनखा भादो सूद १० तक नित्य धरे, दर्पन दिखाय तुरंत राजभोग धरिये.. राजभोग मे महाभोग के भाव सू विशेष सखड़ी, अनसखड़ी की सामग्री धरी जाय… उत्सव सामग्री: मठडी, पंजरी और वेठमी इत्यादिक… समय भये भोग सराई के पोतना करिके अचवन् – मुख्वस्त्र कराइके बिरी आरोगायके श्रीकू पलना मे पधरावे… श्रीकु पलना पहेलेसू गुलाब या केवड़ा के पान सो सिद्ध करी राखे और मोतीकी मालाए लगाए और कपडेको तोरन अव्श्य बाँधे… (कही लोग पालनामे गुब्बारे या प्लास्टिक के खिलोने या चॉकलेट बाँधते हे ये सब ग़लत हे ऐसा कभी नही करना चाहिए श्रीमहाप्रभुजी के परंपरा के अनुसार ही श्रीकू सोहाय) अब श्रीकू पालने मे पधरायके माला धरीके दर्पण दिखाय के भेट धरे (८ की तरह) अब दंडवत करी हाथ ख़ासा करी जुलायवेकी आग्या मांगीके श्रीकू जुलावे ये नन्दोत्सव के भावसो हे तब ८ कीर्तन होवे ४ बधाई के और ४ पलना के : प्रथम ४ या रीत सो होवे: १. व्रज भयो महरके पूत २. हेरि हे आज नंदरायके ३. नंदमहोत्सव हो बड़ कीजे और ४. चिरंजियो गोपाल रानी तेरो || ये कीर्तन होने के बाद आरती की भावना करे श्री कू विशेष खिल्लोना सू खिलावे प्रभु आगे घरके सब लोग मिलके नृत्य करे “बरसाने ते टिक्को आयो नंद महर को ठोटा जायो” के नारा लगाय के ज़ोरसू | अब बेठ के पलना के ४ कीर्तन गावे: १.प्रेंख पर्यंक शयनं, २. प्रेंख पर्यंक शयनं (सुरदास), ३. वारि मेरे लटकन, ४. तुम व्रजनारी के लाला या रीतसो श्रीकू झुलावे खिलावे आनंद करे और करावे…
( पार्ट :: ८ )
श्रीजन्माष्टमीकी वैष्णव की गृह सेवा प्रणालिका (पार्ट- ८)
अब श्रीको पलनामेसू सिहासन पे पधरावे और अनोसर करते होय तो करे वरना उत्थापनभोग धरिये बादमे सब क्रम नित्यानुसार बाललीला के कीर्तन गाए जाय भादो सूद ४ तक….. (वैष्णव के यहा १ ही दिन नन्दोत्सव के दिन ही पलना झूले)
अब जन्माष्टमीकी कुछ विशिष्ठ बाते:
* वैष्णव के यहा छटि पूजा और मार्कण्डेय पूजा जेसो कोई क्रम ना होय
* नंदमहोत्सव मे जशोदा नंदराई जेसे भेख को क्रम वैष्णव के यहा नाही होय
* नंदमहोत्सव अपने प्रभुके साथ ही मनावे कोई प्राइवेट मंदिर मे जानेकी ज़रूरत नही हे अपने कुटुंब के साथ प्रभु को लाड़ लड़ावे
* दोनो दिन विशेष से विशेष सामग्री धरीके कोई वैष्णव को लेवड़ायवेको आग्रह रखिये
* पूरे वर्ष मे १ ही दिन जन्माष्टमी के दिन प्रभु मंगला मे माला धरे
* पूरे वर्ष मे १ ही दिन जन्माष्टमी के दिन प्रभु शृंगार मे तिलक होय और आरती की भावना होय
* नंदमहोत्सव के दिन स्नान नही होत हे क्यूकी श्रीनाथजी और निधि स्वरूप के यहा आज के दिन मंगला सृंगार साथ मे ही होत हे ताते स्नान को क्रम नही हे
* श्रीकी लंबी आयु के भावसु जन्माष्टमी के १ दिन ही तिल गुड युक्त दूध प्रभुको अवश्य आरोगावे
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ब्रज गोपाल मल्ल,,,,,,,,,,,,,,,,,,,