84 વૈષ્ણવ ની નામાવલી

: *श्री गोकुलनाथ जी कृत 84 वैष्णवन की नामावली…*

*( नित्य ही प्रसाद लेवे के पहले याको पाठ करवे को आग्रह जरूर राखनो…)*
*______________________*

*”श्रीविट्ठलमहं वंदे स्वकीयजन वल्लभं…|*
*चतुरशीति भक्तानां व्यक्ति कुर्वे यथार्थत: …||1||*

*दामोदर कृष्णदासौ पुनः दामोदरस्तथा…|*
*पद्मनाभश्च तुलसां पार्वती-रघुनाथक: …||2||*

*रजो पुरुषोत्तमो रुक्मिणी गोपालदासक: …|*
*सारस्वतो रामदासो गदाधरं महानस्तथा…||3||*

*वेणी माधवदासौ च अम्माक्षत्राणी वैष्णवी…|*
*हरिवंशश्चगोविंदो क्षत्री गज्जनधावन: …||4||*

*नारायणो ब्रह्मचारी क्षत्राणी जीयदासक: …|*
*देवाकपूर क्षत्री च दिनकर: पुरुषोत्तम: …||5||*

*मुकुन्द: प्रभुदासश्च प्रभु त्रिपुरादासकौ…|*
*पूर्णमल्लो यादवेंद्र: काश्मीरो माधवस्तथा: …||6||*

*गुसाँइदास गोपालो श्रीपद्मारावलस्तथा …|*
*जोशी पुरुषोत्तमो ज्ञेयो जगन्नाथो समन्वय: …||7||*

*नरहरि राणा व्यास: क्षत्राणी रामदासकौ…|*
*गोपालो कृष्णदासश्च प्रोहितो रामदासक: …||8||*

*बुलामिश्ररामानंदौ विष्णुजीवनदासकौ …|*
*सारस्वतौ भगवान भगवान मुख्य सेवक: …||9||*

*गौडो अच्युतदासश्च अच्युतस्चक्रतीर्थक: |*
*कन्हैयाशालक्षत्री च नरहरिदासकस्तथा …||10||*

*लघुपुरुषोत्तमो गोपालदास जनार्दनौ …|*
*कविराजो गड्डू स्वामी उत्तमश्लोकदासक: …||11||*

*इश्वरोत्तम श्लोकाख्यो राजा माधवको तथा …|*
*सिहनंदे सासु बहु परमानंदसूर कौ …||12||*

*बाबा वेणु कृष्णदास छकडा वासुदेवक: …|*
*एक क्षत्राणी आनंददासो विश्वंभरस्तथा …||13||*

*ब्राह्मणी अथ कायस्थ नारायण स्त्रियस्तथा …|*
*अन्यमार्गीय कायस्थ दासो दामोदरस्तथा …||14||*

*सिहनंदे च क्षत्राणि जगतानंदकस्तथा …|*
*इंद्रप्रस्थै चैकक्षत्री जट गोपालदासक: …||15||*

*कृष्णदास: कुंभनश्च वाडवो बादरायण: …|*
*वैष्णवो संतदासश्च सुन्दरदास मावजी …||16||*

*नरहरिदास संन्यासी पांडे सद्दुभवानीका …|*
*श्रीमदाचार्य भक्तानां नामानि बहवस्तथा …||17||*

*तथापि स्वात्मपाठार्थे लिखितानिति क्षम्यतां …|*
*वार्तायां परिशोध्यानि सर्वदा वैष्णवैर्जनै: …||18||”*
*____________________*

*इति श्रीमद्वल्लभाचार्य भक्तानां श्रीमद् गोकुलनाथ जी कृत नामावली सम्पूर्ण …*
———————————–
जो एक समय श्री हरिरायजी राजभोग पश्चात श्री गोकुलनाथजी के पास पधारे… और विनती की…
तातचरण भोजन का समय हुआ है…आप भोजन हेतु पधारे…
उस समय गोकुलनाथजी अति ग्लानी से बिराजे और श्री हरिरायजी की विनती सुनी नही….
तब श्री हरिरायजी जाने की तातचरण कुछ चिंतित है
इसलिए श्री हरिरायजी मोन खड़े रहे…
1 प्रहर बीतने के बाद श्री गोकुलनाथजी को ज्ञात हुआ की श्री हरिरायजी सामने खड़े है…
तब श्री गोकुलनाथजी ने कही अरे! बावा तुम कब पधारे?
तब श्री हरिरायजी कहे की! 1 प्रहर बीत गया भोजन की खबर देने आयो हतो
आपको चिंतित देख मोन खड़ा रहा…
तब श्री गोकुलनाथजी ने हरिरायजी से आज्ञा करी के! हरिराय हम श्री ठाकुरजी को प्रसाद केसे ले सके….
हमसे कोई सेवा ना बने…. श्रंगार करे तो प्रभु को हमारे नख लग जाय….
सामग्री करे तो कुछ भूल हो जाय….
नित्य कोई ना कोई अपराध हमसे हो जाता है सो हम इस महाप्रसाद के लायक नही है…
तब श्री हरिरायजी बड़ी देन्यता से विनती करे की…जो तात आप जो कहो हो उसमे कोई संशय नही है… जो आप बड़े हो तो आप सब जानो हो…
श्री आचार्यचरण आज्ञा करे है की देह टिकने के लिए महाप्रसाद लेना चाहिए पेट भरने के लिए नही…
भगवद सेवा में देह का विनियोग हो इसलिए महाप्रसाद लेना चाहिए…
जो आप एसी आज्ञा करो तो सामान्य जीव भगवद प्राप्ति केसे कर सके??
तब श्री गोकुलनाथजी आज्ञा किये की…. इस अपराध की निवृत्ति एक ही प्रकार से संभव है….
84 252 भगवदीय वैष्णव का नाम लेने मात्र से सारे अपराध की निवृत्ति हो सके….सो इन वैष्णवो की नामावली सदा सर्वदा करनी जिससे सारे अपराध दूर हो जाय…
तब श्री गोकुलनाथजी ने श्री हरिरायजी को 84 252 वैष्णवो की नामावली सुनाई।।
श्री हरिरायजी अपने जीवन में सदा इस नामावली का पाठ कर ही भोजन करने पधारते।।
रसासागर श्री गोकुलनाथजी की जय।।
शिक्षासागर श्री हरिरायजीमहाप्रभु की जय।।
🌹🌷🌷🌺🌻🌼🌸

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એક વૈષ્ણવ ની મનોવ્યથા

श्री रुपचंद खंडेलवाल “भूप”
(जबलपूर)..की मनोव्यथा..

एक बार फिर आओ वल्लभ,
कहकर तुमको रहा बुलाता !
अच्छा हुआ न आये भगवन,
आ जाता तो कहां बैठाता ?
ठेके पर चल रही बैठकें,
खुली मंदिरों में दुकानें,
चंदे सै होती है सेवा,
बिकता प्रसाद है सभी ठिकान
अष्ट छाप अब नहीं,
नहीं है चौरासी वा दो सो
बावन,
तनुवित्तजा नहीं अब,
तनुजा और वत्तजा लोक-
लुभावन,
नहि पुष्टि सिध्धांतों से अब,
रहा किसी का कोई नाता
रहे अखिल भारतीय आप
ईससे आगे ना बढने पाये।
हम अन्तरष्टीय हुए,
झंडे विदेश में भी कहरावे।
अब अन्तर्ब्रह्मान्डीय बन जायें,
शीध्र यह अभिलाषा हैं ।
कार्य न कोई भारी है यह,
पूर्ण सफलता कि आशा है.
यदपि न अभी पूर्ण पारीवारिक,
फिर भी अदम बढाया जाता।।
अच्छा हुआ न आये भगवन,
आ जाते तो कहां बैठाता ?
ठाकुरजी लन्दनन
अमेरिकादिक में,
मन्दिर में रहते हैं ।
. वृंदावंन बन गया वहीं,
पूर्वी कीडा करते रहते हैं।।
सेवा करती वहां गोपियां,
जिन्हें न मासिख छूने पायै।
करते है नित नवीन मनोरथ,
अपटुडेट वैष्णव मन भाये,
सेवा-सरि पाखंड -सिंधु में,
मिलि,न तुमसे देखा जाता
अच्छा हुआ न आये भगवन,
आ जाता तो कहा्ँ बैठाता
सतयुग चार तीन त्रेता में,
द्वापर दो कलियुग में ए
बचा धर्म का पैर,
चल रहा विज्ञापन की लाठी टेक
पुष्टिमार्ग की सेवा भी अब,
मिश्री से पुष्ट हो रही हे पुष्ट हो रही ,
सौ अधर्म में,पांच धर्म को,
मन माना है कष्ट दे रही,
सत्य कहां जा छिपा न इसका,
” भूप ” न कोई उत्तर दे पाता।।
अच्छा हुआ न आये भगवन,
आ आते तो कहाँ बैठाता ?
क्रमांश… ” एक बार फिर आओ वलल्भ,रटता रहता मुझे बुलाता ! ”
आधार.. ग्रंथ.. जिन श्री वल्लभ रुप न जान्यो.

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મહા પ્રસાદ 

*जो एक समय श्रीहरिरायजी राजभोग पश्चात श्रीगोकुलनाथजी के पास पधारे… और विनती की…*

*तातचरण भोजन का समय हुआ है…आप भोजन हेतु  पधारे..*

*उस समय गोकुलनाथजी अति ग्लानी से बिराजे और श्री हरिरायजी की विनती सुनी नही….*

*तब श्री हरिरायजी जाने की तातचरण कुछ चिंतित है इसलिए श्री हरिरायजी मौन  खड़े रहे…*

*एक  प्रहर बीतने के बाद श्री गोकुलनाथजी को ज्ञात हुआ की श्री हरिरायजी सामने खड़े है…*

*तब श्री गोकुलनाथजी ने कही अरे! बावा तुम कब पधारे?*

*तब श्री हरिरायजी कहे की! 1 प्रहर बीत गया भोजन की खबर देने आयो हतो आपको चिंतित देख मोन खड़ा रहा…*

*तब श्री गोकुलनाथजी ने हरिरायजी से आज्ञा करी के! हरिराय हम श्री ठाकुरजी को प्रसाद केसे ले सके….*

*हमसे कोई सेवा ना बने….* *श्रंगार करे तो प्रभु को हमारे नख लग जाय….*

*सामग्री करे तो कुछ भूल हो जाय….*

*नित्य कोई ना कोई अपराध हमसे हो जाता है सो हम इस महाप्रसाद के लायक नही है…*

*तब श्री हरिरायजी बड़ी देन्यता से विनती करे की…* *जो तात आप जो कहो हो उसमे कोई संशय नही है… जो आप बड़े हो तो आप सब जानो हो…*

*श्री आचार्यचरण आज्ञा करे है की देह टिकने के लिए महाप्रसाद लेना चाहिए पेट भरने के लिए नही…*

*भगवद सेवा में देह का विनियोग हो इसलिए महाप्रसाद लेना चाहिए…*

*जो आप एसी आज्ञा करो तो सामान्य जीव भगवद प्राप्ति केसे कर सके??*

*तब श्री गोकुलनाथजी आज्ञा किये की…. इस अपराध की निवृत्ति एक ही प्रकार से संभव है….*

*84 252 भगवदीय वैष्णव का नाम लेने मात्र से सारे अपराध की निवृत्ति हो सके…. सो इन वैष्णवो की नामावली सदा सर्वदा करनी जिससे सारे अपराध दूर हो जाय…*

*तब श्री गोकुलनाथजी ने श्री हरिरायजी को 84 252 वैष्णवो की नामावली सुनाई।।*

*श्री हरिरायजी अपने जीवन में सदा इस नामावली का पाठ कर ही भोजन करने पधारते।।*

*रसासागर श्री गोकुलनाथजी की जय।।*

*शिक्षासागर श्री हरिरायजीमहाप्रभु की जय।।*

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ભાઇબીજ 

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ભકત અને ભગવાન

(1) सौने विसरी शकाय छे , जेने विसरी न शकाय ते – श्रीठाकोरजी ।    
(2) बधुं जतुं करी शकाय छे , पण जेने जतुं नथी करी शकातुं ते – सत्संग                                        
(3) हार्या छतां जे हारतुं नथी ते – भक्तनुं ह्दय ।                                   
(4) बधुं तुटी पडे छतां जे अतुट छे ते – श्रीठाकोरजीनो आपणा प्रत्ये  अने आपणो श्रीठाकोरजी प्रत्येनो ‘स्नेहसेतू’ ।                                      
(5) सागरनो ताग मापी शकाय छे जेनो ताग न मापी शकाय ते – श्रीठाकोरजीनी कृपा ।                       
(6) हजारो अवगुण दोषो होय छतां जे पोताना समजी अपनावी ले ते – श्रीठाकोरजीनुं कोमल उदार ह्दय ।    
(7) गमे तेवुं कपट कलियुगनुं छतांय  हारे नही ते – भक्तनी निखालसता ।  

 

(8) जलथी पण जे ओलवी ना शकाय ऐवी अग्नि ते -भक्तना अंतरनी श्रीठाकोरजी प्रत्येनी विरहाग्नि ।                                      
(9) शब्दमांय न आवी शके ऐ मौनभाषा – भगवान अने भक्तनी नैनकटाक्ष ।                                      
(10) मौनमांय हजार वात कही शके ते – भक्त अने भगवाननुं प्रेमी ह्दय.🙏जय श्री कृष्ण

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દાણ લીલા

🌷દાનલીલા🌷

  દાનનો ઉત્સવ રાધાજીના પ્રાકટ્યના કારણે આપણા જીવનમાં આવે છે ત્યારે ઠાકોરજી આપણા ઉપર દાવો કરી શકે છે કે જો તમારી આત્મરતિ મારા તરફ આવી રહી છે તો હવે તેનું દાન….અત્યારે તો ‘દાન’  નો અર્થ દાન-દક્ષિણાવાળુ દાન એવો થઇ ગયો છે. પણ આ એવું દાન નથી. આ દાન જકાત, વેરો, દાણના અર્થવાળું છે. ભગવાન કહે છે કે હવે તમને જે પણ વિષય (પદાર્થ) ગમતા હોય તેનો ટેક્સ મને આપવો પડશે. મને ટેક્સ આપ્યા વગર આ માલ તમે બીજી જગ્યાએ મોકલી નહીં શકો. કિશનગઢમાં ટ્રક પ્રવેશ કરતો તો અહીંયાની નગરપાલિકાને જકાત આપવી પડતી હતી. પછી જ્યાં જવું હોય ત્યાં જાવ. 
“તસ્માદ્ આદૌ સર્વકાર્યે સર્વવસ્તુ સમર્પણમ્”
માં કહેવા પ્રમાણે આપણે જ્યારે સમર્પણ કરીએ છીએ તે તો આપણા તરફથી કરીએ છીએ પણ જ્યારે ગાંડાગિરધરલાલની જેમ ઠાકોરજી વેત્ર લઇને ઉભા રહી જાય અને આપણું સમર્પણ બળજબરીથી કરાવે.
“અંતરંગસો કહત હૈ સબ ગ્વાલિન રાખો ઘેર,નાગરી દાન દે

બહોત દિના તુમ બચ ગઇ દાન હમારો માર,

આજ હોં લેહોં આપનો દિન-દિનકો દાન સમ્હાર, નાગરિ દાન દે”
    સહસ્ત્રપરિવત્સરનો મારો ટેક્સ તમે ચોરીને વિષયોમાં વાપરી નાખ્યો છે અથવા તે આત્મરતિને તમે મ્ક્તિમાં ખપાવી દીધી છે તે બધાની વસુલાત હું કરીશ. “લે લકુટી ઠાડે ભયે જાન સાંકરી ખોર” ઠાકોરજી લાકડી લઇને ઉભા છે કે પહેલા મારો ટેક્સ લાવો. મને સમર્પિત કર્યા વગર તમે આત્મરતિને બીજી જગ્યાએ કેવી રીતે વાપરી રહ્યા છો ! આ આપણો દાનનો ઉત્સવ છે. મને તમે પહેલા તમારી આત્મરતિની જકાત ભરો. “તસ્માદ્ આદૌ સર્વકાર્યે સર્વવસ્તુ સમર્પણમ્” ત્યાર પછી તમે પ્રસાદના રૂપમાં તમે મન ફાવે તેમ ભોગ કરો. શ્રીમહાપ્રભુજી આજ્ઞા કરે છે “સર્વેષાં બ્રહ્મતા તતઃ” આત્મરતિનો પહેલો ભોગ આપણે ઠાકોરજીને ધર્યો ત્યાર પછી પ્રસાદના રૂપમાં જ્યાં વાપરવી હોય ત્યાં વાપરો. ભગવત્પ્રસાદના રૂપમાં આત્મરતિ વહેંચાવી જોઇએ. “ન મતં દેવદેવસ્ય સામિભુક્તસમર્પણમ્” આત્મરતિને પહેલાં બીજે ક્યાંય વાપરીને પછી દેવાધિદેવ ઠાકોરજીને તેનું એઠું લેવડાવવું એ સારી વાત નથી.

    સમર્પણ અને દાનનો મધુર સંબંધ છે. જ્યારે આપણે આપણી રીતથી કરીએ છીએ ત્યારે તે સમર્પણ છે. અને જ્યારે ઠાકોરજી 

“લે લકુટી ઠાડે રહે જાન સાંકરી ખોર ,

આજ હોં લેહોં આપનો દિન-દિનકો દાન સમ્હાર,

નાગરી દાન દે”

    આમ બળજબરીપૂર્વક સમર્પણ કરાવી રહ્યા છે તે દાન છે. આવું પ્રભુ ત્યારે કરાવશે કે જ્યારે નાગરી હશે. આત્મરતિરૂપ નાગરી આપણા હ્રદયમાં પ્રકટ થઇ હશે તો ઠાકોરજી દાન લેશે. નહીંતર નહીં લે. સખીએ આમ કહ્યું છે. “જાનત હો યહ કૌન હૈ ઐસી ઢીઠ ક્યોં દેત” તો ઠાકોરજીએ કહ્યું કે “શ્રીવૃષભાનકુમારી હૈ અરી તોહિ બીચ કો લેત!” તું વચમાં શુંકામ બો લે છે ! હું સારી રીતે જાણું છું કે આત્મરતિ મારે માટે છે અને હું આત્મરતિ માટે છું. આમાં વચ્ચે કોઇને ખટ-પટ કરવાની જરૂર નથી. આપણામાં પણ આટલી નિષ્ઠા ભગવદ્ભક્તિની હોવી જોઇએ.

    લોકો આપણને પૂછે કે ભક્તિ શા માટે કરવી ? સેવા શું કામ કરવી ? અમને સમજાવો. અરે સમજાવવાની જરૂર શું છે ? શા માટે સમજાવીએ ? કાલે તો તમે એમ પૂછશો કે ખાવું શું કામ જોઇએ એ સમજાવો ! શ્વાસ શું કામ લેવો એ અમને સમજાવો ! આ કાંઇ સમજાવવાની વાતો છે. શ્વાસ લેવો અમારો સ્વભાવ છે, ખાવું એ અમારો સ્વભાવ છે. શ્વાસ અને ખાવાને લીધે અમે જીવી રહ્યા છીએ. એવી રીતે સેવા-ભક્તિ કરવી તે અમારા માટે શ્વાસ લેવા અને ખાવાના જેવી જ અનિવાર્ય આવશ્યકતા છે. તેમાં વળી ‘શા માટે’ એ વળી કઇ બલા છે. કોઇ વધારે પૂછપરછ કરે તો કહી દેવું કે સમય વેડફવા કરી રહ્યા છીએ. આપણી અંદર આટલી હિંમત હોવી જોઇએ. આપણે કોઇને સમજાવવાની શું પડી છે ? આપણો સવાલ એ છે કે સેવા-ભક્તિ શા માટે ન કરવી એ તમે અમને સમજાવો. કરવી જ છે. આત્મરતિ જ્યારે કૃષ્ણાભિમુખ થઇ ગઇ તો કૃષ્ણ આ સાંકરી ખોરમાં
“અતિ છીન મૃણાલકે તારહુતે તિહિં ઉપર પાંવતે ધાવનો હૈ,

યહ પ્રેમકો પંથ કરાલ મહા તલવારકી ધાર પે ધાવનો હૈ”-
    આવી સાંકરીખોરમાં લાકડી લઇને ગાંડા ગિરધરલાલ ઉભો રહી જશે કે પહેલા તમે સમર્પણ કરો પછી આગળ વધો. ભૂલી કેમ ગયા !

    જ્યારે શ્રીનાથજી સતઘરા શ્રીગુસાંઇજીના ઘરમાં પધાર્યા ત્યારે પરિવારના બધાએ પોતાનું સર્વસ્વ શ્રીનાથજીને ભેટ કરી દીધું. પણ એક નાના બેટીજીની નાકની સોનાની વારી ભૂલથી ભેટ ધરવી બાકી રહી ગઇ. શ્રીનાથજીએ એ જોયું તો તે માગીને લઇ લીધી. આ કેમ બાકી રાખ્યું ? ધરો ભેટ ! આ “લે લકુટી ઠાડે રહે” ના જેવી વાત છે.

પૂ.શ્યામ મનોહરજી🙏🏻

🌷સેવા-ૠતુ-ઉત્સવ-મનોરથ🌷

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परिकम्मा को या विधि दीजै ।

🙏🏻परिकम्मा को या विधि दीजै ।

रुक रुक ध्यान करो गिरिवर को,वार वार सिर दीजै ।

सुमरत नाम मगन मन चलिये,परमारथ भी कीजै ।

वाद विवाद त्याग मारग में,मौन प्रार्थना कीजै ।

बटै प्रसाद जो भर भर दोना,बस प्रणाम करि दीजै ।

भूख प्यास के कष्ट होय जो,बडे प्रेम सह लीजै ।

साधु संत की सेवा करके,जनम सफल कर लीजै ।🙏🏻

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પુતના લીલા

क्या इनको कंस नहीं कहा जा सकता है?

पूतना जब नन्दभवन(हवेली)में घुस रही थी तब वहां गोप-गोपिएं मौजूद थीं. पर पूतनाके मायावी नकली सौन्दर्य(ग्लोबल रिलिजन) से वहां खडे सब लोग उसपर मुग्ध हो गये. गोप(वैष्णव) तो उसके नयनकटाक्षसे कामासक्त होकर ऐसे घायल हो गये कि अपने होशोहवास खो बैठे. गोपिओंको(कौन? आप खुद ही सोच लीजिये!) लगा कि ये तो साक्षात् लक्ष्मीजीको भगवानने भोगकेलिये बुलाया है. इस तरह सभी बाधाओंको पार करती हुई पूतना ठाकुरजी तक (हवेली) पहूंच गई.

सवाल यह है कि भगवानके बिराजते वह राक्षसी भगवान् तक पहूंची कैसे? श्रीवल्लभाचार्य सुबोधिनीमें समझाते हैं कि अपने ठाकुरजीके बारेमें ऐसी बेफिक्री भक्तिभावका नाश करनेवाली है. अपने सेव्य प्रभुके विषयमें जरासी भी लापरवाही सारे जन्मकी भक्तिसाधनाको नष्ट कर देती है. इसी लिये श्रीहरिरयाजी लिखते हैं कि अवैष्णव यदि ठाकुरजीके दर्शन कर लेता है तो सेवा करनेवालेकी एक सालकी सेवा निष्पल हो जाती है और ठाकुरजी छू जाते हैं. ऐसा होने पर ठाकुरजीको पञ्चामृत स्नान कराकर शुद्ध करना चाहिये जैसे पूतनाके संसर्ग हो जानेके कारण यशोदाजी आदिने ठाकुजीको गोबर-गोमूत्रसे स्नानादि कराकर शुद्ध किया था. हवेलियोंमें ठाकुरजीका धंधा करनेवालोंको दीनतासागर श्रीहरिरायजीकी यह आज्ञा स्वीकार्य होगी क्या? अवतार समयमें भगवानने पूतनाको अपने तक आने दे कर हमें यह सीख दी है कि अगर तुम मेरे बारेमें यशोदाजी और गोपी-गोपोंकी तरह बेफिक्र हो जाओगे तो तुम्हारे नन्दालयमें भी पूतना आ जायेगी.

श्रीवल्लभाचार्य लिखते हैं कि पूतना कृष्णको उठा गई और उसको मार डालनेका प्रयत्न करने लगी इस घटनासे व्रजवासियोंने यह सीख ली कि आजके बाद हम कृष्णके बारेमें कभी बेफिक्र नहीं रहेंगे, किसी पूतनाके झांसेमें नहीं आएंगे, कृष्णको कभी नजरसे ओझल होने नहीं देंगे, कृष्णको सदा परदेमें रखेंगे.

इससे उलटा पुष्टिमेार्गके ग्लोबलाईजेशन के चक्करमें, व्रजाधिपकी सेवाका पाखंड करनेवाले गोस्वामी और प.भ. वैष्णव आज श्रीवल्लभाचार्यके नामपर क्या कर रहे हैं यह कहनेकी जरूरत है?

आज तो पर्चे छपवा छपवा कर पूतनाओंको, बकासुरोंको, अघासुरोंको इनवाईट किया जा रहा है!

क्या इनको कंस नहीं कहा जा सकता है?

इसीलिये तो कडी-कोटाके समस्त गोस्वामीओंने मिलकर यह घाषणा की है कि “गोस्वामीओंको कृष्णसेवा अपने घरमें ही करनी चाहिये, सार्वजिनक तौरपर सेवा करना घोर धामिक अपराध है. ठाकुरजीकेलिये किसी भी प्रकारका भेट-चढावा मांगना या स्वीकारना शास्त्रमें निषिद्ध है. ठाकुरजीको रकी गई भेंटके बदलमें मिलता प्रसाद देवद्रव्यका होनेसे उसे खानेवाला नर्कमें जाता है”.

क्या ये सब सिद्धान्त आज हमको मान्य हैं. यदि मान्य हैं तो बेवकूफ पुष्टिमार्गीओंको देवद्रव्यका प्रसाद खवाकर नरकमें क्यों डाला जा रहा है?

क्यों गोस्वामीलोग जानबूजकर श्रीवल्लभाचार्यके आदेशोंका अपमान बेशर्मीसे कर रहे हैं?

क्या वल्लभाचार्यके आदेशोंसे विपरीत जाने पर “पुष्टिमार्ग” शब्दका इस्तेमाल किया जा सकता है?

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डु इट योर सेल्फ* 

आजकल यू ट्यूब पर *डु इट योर सेल्फ* (*DIY*) के बहोत से वीडियो वायरल हो रहे है और वामे हम स्वयं कुछ नया और सर्जनात्मक घर पे ही कैसे करे वाकी विस्तृत जानकारी मिले है, पुष्टिमार्ग अंतर्गत जैसे श्रीआचार्यचरण ने हमे *डु इट योरसेल्फ* की प्रक्रिया सु अपन को सर्वस्व स्वरूपा भगवदसेवा पधराय दीनी और आज्ञा किनी के *हम तोकु आपनो सर्वस्व पधरा दे रहे है वाको तुम आपनो सर्वस्व जानी सेवा करियो*  जाओ अब *घर* जा कर सेवा करो…. और हम क्या करे है ??…वास्तव में जब तक आप और हम स्वयं सेवा नही करेंगे तब तक *सेवा*, *सेव्य स्वरूप*, *सेवा स्थल की गोपनीयता* और *भावभावना* से हम पूर्णतय: वंचित ही रहेंगे..हो क्या रहा है केवल *दर्शनिया* भक्तो की एक पीढ़ी तैयार हो रही है जो केवल दर्शन को ही प्राधान्य दे कर संतुष्ट हो रही है, करनो धरनो कुछ नही… पुष्टिमार्ग में सब ठौर घोर *व्यापारीकरण* छा गयो है…. वास्तविकता यह है कि *गृहसेवा*, *अनन्यता*, *अनंता*, *स्वसेव्य को सुदृढ़ आश्रय* जो समग्र पुष्टिमार्गभक्तिमार्ग को मुख्य प्राणाधार स्वरूप है वाको ही हम आज बिसर गए है… *विश्वास तो श्वासकी भांति होनो चाहिए*, श्वास यदि खंडित हो गयो तो उसे हैम मृतावस्था या मृत्यु कहते है ठीक वैसे है पुष्टिभक्तिमार्ग में आश्रय खंडित हो गयो तो सब कुछ खंडित हो जाय है….एक मात्र लोक कानको अन्याश्रय दोष के कारण श्रीद्वारिकधीशजी के अनन्य कृपापात्र दामोदरदास संभरवाला की पत्नी को म्लेच्छ पुत्र भयो, श्रीमहाप्रभुजी को स्पष्ट वरदान हतो की पुत्र होयगो फिर भी उनकी पत्नी की दासी द्वारा कियो गयो अन्याश्रय दोष लग्यो तो अपन समझ सके कि अन्याश्रय दोष कितनो बाधक हो सके !!!

दृढ़ आश्रय हतो या लिए तो भगवदीय श्रीचाचा हरिवंशजी श्रीअष्टाक्षर महामंत्र  के स्मरण मात्र से जल पर नि:शंक चरण धर सकते थे….अपनी तो ये दुर्दशा है कि आव भाई हरखा आपणे तो बधा सरखा…..एक ही म्यान में हम कितनी सारी तलवारे  लेकर घूम रहे है ??  उन जीव के लिए पुष्टिमार्ग है ही नहीं ?जब हमने श्रीजी को अपना सर्वस्व माना ही नहीं, जब हम में श्री वल्लभ प्रति मार्ग प्रति दृढ़ता एवं वफ़ादारी ही न हो तो मुख्यतः हम पुष्टिमार्गी कैसे हो गए ?

पुष्टिअस्मिता, वाके गौरव और गरिमा की तो आज हमने धज्जियां उड़ा दी है और तो और नोकरी धंधा और अनेकानेक लौकिक प्रतिबंधों की आड़ में हम व्यर्थ बहाने बनाके सेवा से कोसो दूर भाग रहे है, श्रीठाकुरजी को अपने अहंता ममतात्मक संसार मे पधराते ही नही.. और रेडीमेड दर्शन करके बस संतुष्ट हो रहे है…. *भटकनेवाली वृति या व्यक्ति कदापि पुष्टिमार्गीय हो ही नही सकती*.. जिसके हृदय में सेवा को ताप ही न हो…वास्तव में *८४/२५२ भगवदियो ने इस सेवामार्ग को साक्षात जियो है*…स्वसेव्य श्रीमदनमोहनजी की सर्वोपरि सेवा छोड़ भगवदीय रुक्ष्मिणी ने २४ वर्ष पर्यन्त गंगा स्नान न कियो..साक्षात भगवदस्वरूप के सानिध्य और अनवसर मे भक्ति की समान तन्मयता ही इन वैष्णवो को प्राण हतो… क्योंकि स्वसेव्य प्रभुसेवा के समकक्ष या अधिक कोई व्रत, तप, जप, तीर्थाटन को फल इत्यादि तुच्छ मात्र है इतनाही नही मोक्ष(मुक्ति) जैसो फल भी तुच्छ है और जब रुक्ष्मिणी भगवदचरणारविन्द को प्राप्त भई तब वैष्णवो ने कही की रुक्ष्मिणी गंगा पाई तब प्रभुचरण श्री गुसांईंजीने आज्ञा किनी की वैष्णवो ऐसे नही *गंगा ने रुक्ष्मिणी पाई* भगवदीय के पावन सानिध्य मात्रसे स्वयं तीर्थ भी कृतार्थ और सनाथ होय है….अन्य देव के परम उपासक, अनन्य निष्ठा रखने वाले हरिवंश पाठक श्रीवल्लभ की कृपा से स्वमार्गमें प्रवेश पाए और श्रीनवनितप्रियजी के मेहद सेवाधिकारी बन पाए….. *प्रेम आसक्ति व्यसन* की चरमसीमा को मूर्तिमंत स्वरूप श्री गज्जन धावन जीन के बिना श्रीनवनितप्रियजी राजभोग हु न अरोगे…..आहाहा…कितनी बड़ी बात है कि स्वयं प्रभु अपने भक्त की बाट देखे ठाड़े बिराजे…सुवर्ण को विष्ठा और अनिष्ट जानने वाले परम त्याग के मूर्तिमंत स्वरूप श्रीनारायणदास ब्रह्मचारी स्वसेव्य श्रीगोकुलचंद्रमाजी के परम कृपापात्र बने….. अपने प्राणों की परवाह न करके अपने प्राणेश श्रीवल्लभ को श्रीकृष्णदास मेघन ने मध्यरात्रि को मुरमुरा की सामग्री आरोगायी तो भावविवश श्री गदाधरदासजी ने रात्रि को अपने सेव्य श्री मदनमोहनजी को जलेबी  आरोगयी ….अरे अम्मा क्षत्राणी के दो दो पुत्र श्री हरिशरण हुए तो अम्मा क्षत्राणी ऐसी खमीरवंती वैष्णव हती के लौकिक रीती सु न रोइ पर यह भाव से रोइ ” के अब मेरे श्रीलालन अब कौन संग खेलेंगे ” यह हतो पुष्टिभाव को सांचो वैभव वामे अपने प्रभु में पारावार प्रित हती , निश्चल प्रेम हतो, कैसी दिव्य भावना, कितनो सूक्ष्म तत्सुख को विचार…. इन वल्लभियन को धन्य है …..
अपने पुष्टिमार्ग में *आबाल, वृद्ध, रोगी, सशक्त, स्त्री, पुरुष, राय, रंक, क्षत्रिय, शुद्र, म्लेच्छ, वैश्यावृति करने वाली वैश्या, पशु, पक्षी, स्थावर, जंगम को भी अंगीकार हुओ है* …..अपनो धर्म गिरो रखने को भी उदाहरण प्राप्त है वार्ता साहित्य में और वे भगवदसेवाके दिव्य अधिकारी बन पाए है …त्रिभुवननियंता अन्य कोई साधन से नही बस केवल भक्त के शुद्ध विशुद्ध प्रेमभक्ति से वश होय है…श्रीमहाप्रभुजी की कानि से हमारे घर मे बिराजे है….
*प्रीत ही ते पैये प्रीतम, यद्यपि रूप गुण शील सुघड़ता इन बातन से न रिझईये

प्रीतम प्रीत ही ते पैये*…
बस एक निर्धार करो…अपने स्वसेव्य अपने माथे बिराजे भये सर्वस्व निधि कि जैसीभी, जितनी भी सेवा बनी आवे उतनी हम स्वयं अपने गृह में करेंगे… 

अपने सुखमें, दुखमे, उन्नती और पतन मे भगवदचरणारविन्द को आश्रय कभी न त्यागेंगे….सर्वथा शरणं हरि…
*कृष्ण एव गतिर्मम*,  *कृष्ण त्वास्मि दासोहम* और

*श्रीकृष्ण: शरणं ममः* के प्रखर निर्धार से ही हम इस कृपामार्ग के यथार्थ अनुगामी और पुष्टि पथिक बन पाएंगे…आवश्यता बस इतनी ही है कि………..
*जस्ट डु इट योर सेल्फ….*

(*JUST DO IT YOURSELF*)
अनतन जैये पिय रहिये मेरे ही महल….जोई जोई कहोगे सोई सोई करोगी टहल….शैया सामग्री बसन आभूषण सब विध कर राखूंगी टहल…रहिये मेरे ही महल…अनतन जैये….
*महदमहामहोत्सव पूर्णपुरुषोत्तम आनंदघन परम रसात्मक स्वरूप श्रीकृष्णप्रादुर्भाव उत्सव और श्री नंदमहोत्सव की कोटि कोटि भावसभर अनेकानेक हॄदयमय मंगल बधाई*,,,,,,,,,,,,,,गो,श्री श्याम मनोहर जी,,,,,,,,,

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​श्रीजन्माष्टमीकी वैष्णव की गृह सेवा प्रणालिका 

श्रीजन्माष्टमीकी वैष्णव की गृह सेवा प्रणालिका 

         कुल पार्ट :: ८ ( १ से ८ तक )       

                   (पार्ट   ::   १)

सबसू पहेले ये बात समजे की जन्माष्टमी के दिन की सेवा प्रणालिका को क्रम श्रीजीद्वार मे निधिस्वरूपो के यहा और वैष्णव के गृह मे भिन्न है… यहा पर वैष्णव के गृह की प्रणालिका लिखी जा रही हे

जन्माष्टमी के आगे के दिन उत्सव तैयारी की जाती है… जिसमे सब सोने चाँदी के पात्र और खिलोने मांझी के चकचकित किए जाते है… सब सामग्री सिद्ध कर दी जाती हे दूधगर, नागरी और अनसखड़ी की , साज़ पलट कर उत्सव को धर देनो चाहिए … पांचामृत के लिए सब तैयार होनो चाहिए … १ छाब मे जो वस्त्र सृंगार प्रभु धरने वाले हे वो तैयार कर दीजिए… नई गूंजा की माला अत्तर भेट की रोकड़ तैयार होने चाहिए ये सब अगले दिन की तैयारी हे
                    ( पार्ट   ::  २ )

श्रीजन्माष्टमीकी वैष्णव की गृह सेवा प्रणालिका (पार्ट-२)

अब जन्माष्टमी के दिन श्रीप्रभु को थोड़ा जल्दी जगाए नित्यसे … प्रथम श्रीमहाप्रभुजीको कीर्तन दूसरो जमुनाजीको और तीसरो जगायवेको वामे बधाई गाइ जाय “सुनोरि आज नवल बढ़ायो है (परमानंददासजी)” अब तीन बेर तारी बजाय के तीन बेर घंटी बजाय के श्री को जगावे और शैया मे सू सिंहासन पे पधरावे… अब श्रीकू मुख पोन्छिके पित ओढनी धरे केसरी माला कंठ मे धरे लाल पाघ् धरे कर्ण फूल और शीशफूल धरे (श्री सिर्फ़ आज के दिन ही मंगला मे माला धरे) अब कलेवा धरे … नागरी , माखन-मिश्री की कटोरी, केसर दूध और जल इत्यादि यथा सौकर्य धरे तब कानी दे टेरा करी बधाई गाइ जाय “आज गृह नंदमहर के बधाई (सूरदासजी)” (आज कलेवा सू जांझ बजे) अब समय भये भोग सराई अचवन् मुखवास्त्र कराई मंगल आरती की भावना की जाय उसके बाद मंगला सन्मुख बधाई “देखो नन्दकुमार नैन भर(चत्रभुजदासजी)” गायो जाय… अब पांचामृत की तैयारी होय….
                    ( पार्ट ३ )

श्रीजन्माष्टमीकी वैष्णव की गृह सेवा

 प्रणालिका (पार्ट-३)

आज स्नान को विशिष्ठ क्रम हे मंगला के बाद १ तासक मे चोकी धरके उसके पर स्वेत वस्त्र धरके अब श्री कू पधरावे सब वस्त्र, सृंगार बड़े करके १ हाथ मे तुलसीदल और ५ तुलसीपत्र लेके गद्यमन्त्र बोलके श्री के चरण के पास तुलसीदल पधरावे (जिनको मन्त्र आतो ना होय वो याको भावार्थ बोले) और तुलसीपत्र पंचामृत मे | अब श्रीकु चंदन को तिलक करके दंडवत करके पंचामृत की आज्ञा माँगे … पहेले सू ही १ थालिमे ५ कटोरी तैयार रखे जिसमे १ मे दूध २ मे दही ३ मे बुरा ४ मे घी और ५ मे मध तैयार रखे वो श्री के पास पधरावे… अब १ लॉटी या शंख सू पंचामृत करावे वा समय “व्रज भयो महर के पूत (सूरदासजी)” गाइ जाय … पहेले दूध सो बाद मे दही सो बाद मे बूरासो बाद मे घी सो बाद मे मध सो और अंत मे फिर से दूध सो स्नान करावे …. अब श्री को दूसरी चोकी पे पधराइ अभ्यंग होय ,,, वामे भी विशिष्ठता है..
                   ( पार्ट  ४ )

श्रीजन्माष्टमीकी वैष्णव की गृह सेवा प्रणालिका                  (पार्ट-४)

अब अभ्यंग के लिए जो जल सुहातो करे वामे केसर और गुलाबजल डाल्यो जाय अब श्री को अभ्यंग को पावडर लगायके वा जल सो स्नान करावे अब अंगवस्त्र करे और श्रीके अंग मे सोंधा को अत्तर लगायो जाय … अब प्रभु को सिंहासन पे पधाराय के केसरी उत्सव के वाघा धरिये (श्रीप्रभु ८ और ९ को ही वाघा धरे १० सू फिर से सिर्फ़ ओढनी धरे) अब पांचामृत और अभ्यंग को सब साज़ बडो करके पोतना करके हाथ ख़ासा करके हाथ मे अत्तर लगाय के शृंगार की तैयारी करिए …. नख शिख ताई सुंदर सृंगार बड़े भारी उत्सव के धरे श्री मस्तक पे केसरी कूल्हे पर पाँच चंद्रिका जोड़ उत्सव को चोटीजी धरे (कही जगा पे स्वेत कूल्हे धरे हे) आज गूंजा की माला नई धरे वाघनखा धरे,केसर सो कमलपत्र कपोल पे चित्र करी सके… गादि पे भी बड़े भारी उत्सव के शृंगार करिए,केसरी उपरना ओढ़ाइए… २ पुष्पमाला धरिये (पुष्पमाला को सौकरया न होय तो पवित्रा धर सके) अब प्रभु को तिलक करिए कुमकुम को तिलक २ बार करके अक्षत २ बार लगाय के भेट धरिये (भेट मे सिक्का ही धरे जाय ५ को या १० को नोट के छुयो ना जाय अप्रसमे) २ बीड़ा धरके प्रभूको दर्पण दिखाइए और दंडवत करिए शृंगार सन्मुख १ बधाई गावे “मिली मंगल गाओ माई (परमानंददासजी)”

   

                ( पार्ट ::  ५ )

श्रीजन्माष्टमीकी वैष्णव की गृह सेवाप्रणालिका 

श्रीजन्माष्टमीकी(२)    (पार्ट ५ से ७ तक)

                   

अब पुष्पमाला बड़ी करके यथासौकर्य राजभोग धरिये (वैष्णव आज व्रत करे व्रत मे फलाहार को ही नियम हे.. पर प्रभु सब आरोगे) उत्सव भोग की सब सामग्री धरिये .. केसर पेंडा, श्रीखंड, पंजरी, तिल-गुड युक्त दूध, खीर,सखड़ी (धरते होय तो) इत्यादि सब सामग्री सजाय के भोग धरिये हाथ मे तुलसी दल और तुलसी पत्र ले गद्यमन्त्र बोलके दल चरण मे धरिये और पत्र सब सामग्री मे | अब कानी दे टेरा करिये वा समय बधाई बोली जाय “लाल को सुफल जन्मदिन आयो (द्वारकेशजी)” अब जप पाठ करिए रसोई पोतिये नित्य के क्रम से आज राजभोग को समय दुगनो (double) होय …. अब समय भए भोग सराइये पोतना करी श्रीकु आचमन मुखवस्त्र कराइके २ बिरी आरोगाइए,माला धरीके, जारी बँटा पास धरीके अब थोड़ी देर खिलोना सो खिलाइए आर्तीकी भावना करिके २ कीर्तन गाए जाय ” आज बधाई को दिन निको और हेरी हे आज नन्दराय के आनंद भयो (दोनो पद परमानंददासजी के)” अब जिनके यहा अनोसर को क्रम होय वो अनोसर कराईए…..
                     ( पार्ट ::  ६ )

श्रीजन्माष्टमीकी वैष्णवकी गृह सेवा प्रणालिका                                           पार्ट :  ६  
अब उत्थापन के समय भये टेरा खोलीके झारी बँटा फूलमाला बड़ी करके भोग धारिए (अगर अनोसर को क्रम ना होय तो सिधो उत्थापन भोग धरिये) वा समय “आँगन नंदके दधि कादो(मेहा)” ये बधाई गाइ जाय (उत्थापन क दर्शनमे कोई कीर्तन नही गायो जाय हे) उत्थापनभोग मे सुकमेवा लीलामेवा विशेष रूप सो धरे जाय हे | अब समय भये भोग सराईए पोतना करी अचवन मुख्वस्त्र करायके संध्याआर्ती की भावना करी जाय अब संध्या के भाव सो २ बधाई गाइ जाय ” आज कहुते या गोकुल में॥(गदाधरदासजी) और धर्म हिते पायो यह धन (परमानंददासजी)” आज सृंगार बड़े ना होय और तुरंत शेन भोग धरिये … शेन भोग मे दूध , फीका और यथा सौकर्य अनसखड़ी धरी जाय.. वा समय ब्यारू की बधाई “तिहारो घर सुबस बसों (परमानंददासजी)” गायो जाय…. ब्यारू को समय नित्य के समय से थोडो ज़्यादा रखिए… अगर पाठ या जप बाकी होय तो वो करिए श्रीके पात्र मांजवेकी सेवा करिए… समय भये भोग सरायके पोतना करी अचवन मुख्वस्त्र करायके २ बधाई गावे “रावल के गोप (चत्रभुजदासजी) और हरि जनमत ही आनंद भयो (परमानंददासजी)” गायो जाय अब शेनआर्ति की भावना करके सब शृंगार वस्त्र बड़े करे और श्रीकू पोढ़ाई दे पोढ़ाई के बाद “रानी जशुमतिगृह आवत गोपिजन (परमानंददासजी) और दृढ़ इन चरणन केरो (आश्रयको पद सूरदासजी)” गायो जाय वैष्णव के यहा जागरणको और रात्रीके जन्मको पंचामृत ये सब कोई क्रम नही हे | सब वैष्णव मिलके व्रत को महाप्रसाद लेके साथ मिलके बधाई गान करे गरबा हिंचहमची गाय के आनंद करे भगवद्नाम सत्संग करी रात्रि को जागरण करे और १२:३० बजे रात्रीके व्रत समाप्त होय तब सब प्रसाद लाई सके |

 

                  ( पार्ट। ::  ७  )

श्रीजन्माष्टमीकी वैष्णव की गृह सेवा प्रणालिका (पार्ट- ७)

अब दूसरे दिन ९ की प्रणलिका: अब ९ के दिन हू श्रीकू बेगी उठायके मंगलभोग धरायके सरा कर आर्तीकी भावना करके तुरंत श्रृंगार धरे. आज स्नान को या कीर्तन को क्रम ना होय… वस्त्र – श्रृंगार सब जन्माष्टमीके दिन केही आवे, वाघनखा भादो सूद १० तक नित्य धरे, दर्पन दिखाय तुरंत राजभोग धरिये.. राजभोग मे महाभोग के भाव सू विशेष सखड़ी, अनसखड़ी की सामग्री धरी जाय… उत्सव सामग्री: मठडी, पंजरी और वेठमी इत्यादिक… समय भये भोग सराई के पोतना करिके अचवन् – मुख्वस्त्र कराइके बिरी आरोगायके श्रीकू पलना मे पधरावे… श्रीकु पलना पहेलेसू गुलाब या केवड़ा के पान सो सिद्ध करी राखे और मोतीकी मालाए लगाए और कपडेको तोरन अव्श्य बाँधे… (कही लोग पालनामे गुब्बारे या प्लास्टिक के खिलोने या चॉकलेट बाँधते हे ये सब ग़लत हे ऐसा कभी नही करना चाहिए श्रीमहाप्रभुजी के परंपरा के अनुसार ही श्रीकू सोहाय) अब श्रीकू पालने मे पधरायके माला धरीके दर्पण दिखाय के भेट धरे (८ की तरह) अब दंडवत करी हाथ ख़ासा करी जुलायवेकी आग्या मांगीके श्रीकू जुलावे ये नन्दोत्सव के भावसो हे तब ८ कीर्तन होवे ४ बधाई के और ४ पलना के : प्रथम ४ या रीत सो होवे: १. व्रज भयो महरके पूत २. हेरि हे आज नंदरायके ३. नंदमहोत्सव हो बड़ कीजे और ४. चिरंजियो गोपाल रानी तेरो || ये कीर्तन होने के बाद आरती की भावना करे श्री कू विशेष खिल्लोना सू खिलावे प्रभु आगे घरके सब लोग मिलके नृत्य करे “बरसाने ते टिक्को आयो नंद महर को ठोटा जायो” के नारा लगाय के ज़ोरसू | अब बेठ के पलना के ४ कीर्तन गावे: १.प्रेंख पर्यंक शयनं, २. प्रेंख पर्यंक शयनं (सुरदास), ३. वारि मेरे लटकन, ४. तुम व्रजनारी के लाला या रीतसो श्रीकू झुलावे खिलावे आनंद करे और करावे…

   

           ( पार्ट  ::  ८ )

श्रीजन्माष्टमीकी वैष्णव की गृह सेवा प्रणालिका (पार्ट- ८)

अब श्रीको पलनामेसू सिहासन पे पधरावे और अनोसर करते होय तो करे वरना उत्थापनभोग धरिये बादमे सब क्रम नित्यानुसार बाललीला के कीर्तन गाए जाय भादो सूद ४ तक….. (वैष्णव के यहा १ ही दिन नन्दोत्सव के दिन ही पलना झूले)

अब जन्माष्टमीकी कुछ विशिष्ठ बाते:

* वैष्णव के यहा छटि पूजा और मार्कण्डेय पूजा जेसो कोई क्रम ना होय

* नंदमहोत्सव मे जशोदा नंदराई जेसे भेख को क्रम वैष्णव के यहा नाही होय

* नंदमहोत्सव अपने प्रभुके साथ ही मनावे कोई प्राइवेट मंदिर मे जानेकी ज़रूरत नही हे अपने कुटुंब के साथ प्रभु को लाड़ लड़ावे

* दोनो दिन विशेष से विशेष सामग्री धरीके कोई वैष्णव को लेवड़ायवेको आग्रह रखिये

* पूरे वर्ष मे १ ही दिन जन्माष्टमी के दिन प्रभु मंगला मे माला धरे

* पूरे वर्ष मे १ ही दिन जन्माष्टमी के दिन प्रभु शृंगार मे तिलक होय और आरती की भावना होय

* नंदमहोत्सव के दिन स्नान नही होत हे क्यूकी श्रीनाथजी और निधि स्वरूप के यहा आज के दिन मंगला सृंगार साथ मे ही होत हे ताते स्नान को क्रम नही हे

* श्रीकी लंबी आयु के भावसु जन्माष्टमी के १ दिन ही तिल गुड युक्त दूध प्रभुको अवश्य आरोगावे

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ब्रज गोपाल मल्ल,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

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